भोरमदेव मंदिर दर्शन | छत्तीसगढ़ का प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर

भोरमदेव मंदिर का फोटो

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव मंदिर को "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" कहा जाता है। यह नाम इसे इसलिए मिला क्योंकि यहां की मूर्तिकला और शिल्पकला खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिरों से मिलती-जुलती है।

यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का भी बेजोड़ उदाहरण है। भोरमदेव मंदिर का निर्माण 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच फणीनागवंशी राजाओं द्वारा करवाया गया था।

मुख्य मंदिर को राजा गोपाल देव ने 1080 ईस्वी में बनवाया। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां “भोरमदेव” के नाम से पूजा जाता है। “भोरम” एक आदिवासी शब्द है जिसका अर्थ है "शिव", और "देव" यानी देवता।

मंदिर में तीन तरफ से प्रवेश किया जा सकता है, जो सीधे मंदिर मंडप में जाता है। यह चार केंद्रीय और बारह पार्श्व स्तंभों द्वारा समर्थित है, जो मंडप की छत को बनाए रखते हैं।

भोरमदेव मंदिर - छत्तीसगढ़ का खजुराहो

भोरमदेव मंदिर का चित्र

भोरमदेव मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है, जिसमें पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी देखने योग्य है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने वाली मूर्तियाँ बनी हुई हैं — जैसे नृत्य, संगीत, प्रेम और युद्ध के दृश्य। कुछ मूर्तियाँ कामकला से संबंधित भी हैं, जिनकी तुलना खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों से की जाती है।

इन स्तंभों और मंडप की दीवारों पर विस्तृत नक्काशी उस युग के शिल्पकारों की कलात्मक प्रतिभा को दर्शाती है। सुंदर दृश्य और मंदिर का ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ में एक अवश्य देखने योग्य स्थान बनाता है।

भोरमदेव मंदिर माउंट माईकल रेंज की पहाड़ियों के बीच स्थित है और इसके चारों ओर घना जंगल और सुंदर झीलें हैं। इस प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे होने के कारण यहां का वातावरण शांत और मन को शांति देने वाला होता है। यह स्थान न केवल श्रद्धालुओं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए भी खास है।

हर साल फरवरी या मार्च महीने में यहां भोरमदेव महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें लोक कलाकार, नृत्य मंडलियां और पर्यटक बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। यह उत्सव छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को करीब से जानने का एक शानदार अवसर होता है।

भोरमदेव मंदिर, छत्तीसगढ़ के प्राचीन मंदिरों में एक अनमोल रत्न है। इसका ऐतिहासिक महत्व, शानदार शिल्पकला, और प्राकृतिक सौंदर्य इसे छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक बनाता है। अगर आप छत्तीसगढ़ पर्यटन की योजना बना रहे हैं, तो भोरमदेव मंदिर को अपनी सूचि में ज़रूर शामिल करें।

How to Reach कैसेु पहुंचे

  1. Plane-

    भोरमदेव मंदिर पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट रायपुर और बिलासपुर में है।

  2. Train-

    भोरमदेव मंदिर से नजदीकी रेलवे स्टेशन रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग हैं।

  3. Bus-

    भोरमदेव आस पास के शहरो से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है।

Distance अनुमानित दूरी

  1. कवर्धा से भोरमदेव मंदिर की दूरी - 17 कि मी।

  2. बिलासपुर से भोरमदेव मंदिर की दूरी - 111 कि मी।

  3. रायपुर से भोरमदेव मंदिर की दूरी - 141 कि मी।

Stays विश्राम स्थल

कवर्धा में आपको होटल, रूम, और रिसोर्ट मिल जायेगा, अगर किसी कारन से आपको रूम उपलब्ध नहीं हो रहा हो तो आप आस पास के जगहों में भी रुक सकते हैं।

Adventure करने के लिए गतिविधिया

  1. ⭐ फोटोग्राफी

Foods खाने की सुविधा

सभी तरह के खाने के सामान उपलब्ध है, लेकिन अगर आप यंहा घूमने आये हो तो यंहा की स्थानीय व्यंजन का लुफ्त उठाये।

प्रश्न और उनके उत्तर

1. भोरमदेव का मंदिर कहां स्थित है?

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले (पूर्व नाम: कवर्धा) में स्थित है। यह मंदिर रायपुर से लगभग 130 किलोमीटर और कवर्धा शहर से करीब 17 किलोमीटर दूर है।

2. भोरमदेव मंदिर का निर्माण कब हुआ था?

भोरमदेव मंदिर का निर्माण लगभग 1080 ईस्वी के आसपास हुआ था। इसे फणीनागवंशी वंश के राजा गोपालदेव ने बनवाया था। यह मंदिर 7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच विकसित हुई एक मंदिर शृंखला का हिस्सा है, जिसमें कई छोटे-बड़े मंदिर भी शामिल हैं।

3. भोरमदेव का मंदिर किस जिले में स्थित है?

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले में स्थित है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से यह मंदिर करीब 141 किलोमीटर की दूरी पर है।

4. भोरमदेव मंदिर का महत्व?

भोरमदेव मंदिर का धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य—चारों दृष्टियों से अत्यधिक महत्व है। इसे छत्तीसगढ़ का "खजुराहो" कहा जाता है, जो इसके महत्व को और भी खास बनाता है। यहाँ प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला भोरमदेव महोत्सव छत्तीसगढ़ की लोक कला, नृत्य और संस्कृति को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है, यह आयोजन राज्य के सांस्कृतिक गौरव को दर्शाता है।

5. भोरमदेव मंदिर की मुख्य विशेषताएं क्या-क्या हैं?

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहाँ "भोरमदेव" के नाम से पूजा जाता है। मंदिर की निर्माण शैली नागर वास्तुकला पर आधारित है, जो उत्तर भारत की प्राचीन मंदिर शैलियों में से एक है। मंदिर की दीवारों पर नृत्य, संगीत, प्रेम, युद्ध और कामकला से संबंधित सुंदर मूर्तियाँ बनी हुई हैं। यह मंदिर माउंट माईकल रेंज की पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ है।

ChhattisgarhPedia

छत्तीसगढ़, भारत का हृदय स्थल, अपनी समृद्ध प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक धरोहरों और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।

घने जंगलों, प्राचीन मंदिरों, जलप्रपातों और अद्भुत गुफाओं से सजा यह राज्य पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।

छत्तीसगढ़ में कई खूबसूरत जलप्रपात हैं, जिनमें चित्रकूट जलप्रपात को 'भारत का नियाग्रा' कहा जाता है।

तीरथगढ़ जलप्रपात अपनी सुरम्य छटा से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहाँ के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार टाइगर रिज़र्व वन्यजीव प्रेमियों के लिए आदर्श स्थल हैं।